नई दिल्ली, 5सितंबर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज अपनी कोटा यात्रा के दौरान शहर के विभिन्न संस्थानों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं से संवाद कर उनका उत्साहवर्धन किया।
इस दौरान संसद में व्यवधानों को अनुचित बताते हुए उन्होंने कहा कि देश की सबसे बड़ी पंचायत संवाद और विचार-विमर्श का मंच होनी चाहिए ना कि शोर-शराबे और हंगामे का। उन्होंने आगे कहा कि “एक मुद्दा आया वन नेशन- वन इलेक्शन का। कह रहे हैं, हम चर्चा ही नहीं करेंगे! अरे चर्चा करना आपका काम है, उससे सहमत होना या ना होना आपका विवेक है।” श्री धनखड़ ने आगे कहा “लोकतंत्र में चर्चा नहीं होगी तो वह लोकतंत्र कहां है? लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए आवश्यक है कि चर्चा और विमर्श हो।”
सरकारों द्वारा मुफ्त की रेवड़ियां बांटने को गलत प्रवृत्ति बताते हुए उपराष्ट्रपति जी ने कहा कि हमारा जोर पूंजीगत व्यय (capital expenditure) पर अधिक होना चाहिए ताकि स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर बनायी जा सके। “ऐसा करने के बजाय यदि कोई सरकार लोगों की जेब गर्म करती है तो यह लाभ अल्पकालिक होगा, & इससे दीर्घकालिक नुकसान उठाने पड़ेंगे।”
भारतीय इतिहास पढ़ाने से संबंधित एक छात्र के प्रश्न के जवाब में उपराष्ट्रपति जी ने कहा कि हर छात्र-छात्रा को इतिहास पढ़ना चाहिए भले ही उनके अध्ययन के विषय कुछ भी हों। इससे हमें हमारे स्वतंत्रता बलिदानियों के बारे में जानने को मिलता है। श्री धनखड़ ने आगे कहा कि अमृत काल में हमें अनेक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को जानने का अवसर मिला है।
एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि प्राइमरी शिक्षा बच्चों का आधार तैयार करती है, अतः प्राइमरी एजुकेशन की गुणवत्ता सुधारने पर बल देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि, “गांवों में देखता हूँ कि सरकारी स्कूलों की अच्छी बिल्डिंग हैं, काफी एरिया है, क्वालिफाइड शिक्षक हैं, लेकिन लोग अपने बच्चों को ऐसे छोटे प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे हैं जिसमें प्लेग्राउंड भी नहीं है और जहाँ उनका आर्थिक शोषण होता है। यह न केवल सरकार बल्कि समाज, NGO, आम नागरिक सबकी जिम्मेदारी है कि वे सरकारी स्कूलों पर अपना ध्यान फोकस करें।”
उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि भारतीय होने पर गर्व कीजिए, भारत की उपलब्धियों पर गर्व कीजिये और हर हाल में राष्ट्र को सर्वोपरि रखिए। “भारत आज बुलंदियों पर है लेकिन कुछ सिरफिरे परेशान हैं और मजबूत भारत को मजबूर भारत बताना चाहते हैं,” उन्होंने कहा।
धनखड़ ने छात्रों से कहा कि वे कभी टेंशन ना लें और असफलता के भय से भयभीत न हों। असफलता का भय सबसे बुरी बीमारी है। दुनिया का कोई भी बड़ा काम एक प्रयास में नहीं हुआ है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग कराते समय आखिरी क्षण में कुछ गड़बड़ी आ गयी थी। लेकिन उसी से सीख कर हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक चन्द्रमा की सतह पर उतार दिया।
उपराष्ट्रपति ने छात्रों को नदी से सीखने की सलाह देते हुए कहा कि जैसे नदी अपना रास्ता स्वयं बनाती है वैसे ही युवाओं को अपनी रुचि और एप्टीट्यूड के अनुसार जीवन में कैरियर चुनना चाहिए, लोगों से प्रभावित होकर या उनके दबाब में आकर जीवन के निर्णय नहीं करने चाहिए। “आप स्वतंत्र नदी बनिये, बंधे हुए किनारों वाली नहर नहीं,” उन्होंने कहा।
स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स और मार्क जुकरबर्ग जैसी हस्तियों का उदाहरण देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि ये सभी कॉलेज ड्राप आउट्स थे लेकिन उनमें कुछ नया करने का जुनून था। डिग्री की आज सीमित अहमियत है, मुख्य बात है आपकी काबिलियत & आपकी स्किल।
उभरते भारत की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि डिजिटल तकनीक, DBT और पारदर्शिता के जरिये भ्रष्टाचारियों और दलालों को सत्ता के गलियारों से दूर कर दिया गया है। उन्होंने युवा छात्रों से अपील की कि वे जीवन में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस रखें, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों पर भी अमल करें।
इस अवसर पर कोटा की विभिन्न कोचिंग संस्थानों के छात्र व शिक्षक उपस्थित रहे। तत्पश्चात उपराष्ट्रपति जी ने सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ के पूर्व छात्रों से भी मुलाकात की।
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