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सचमुच के मुद्दों को ईमानदार तटस्थता से समझना होगा : बबिता यादव

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गुडगाँव, 4 जनवरी (ब्यूरो) : वर्ष 2018 की शुरुआत में दुनिया हर रोज लगातार अधिक बहुरंगी और बहुभाषाभाषी बन रही है और हम सब नएपन से जैसे-तैसे तालमेल बिठाते हुए जीने को मजबूर हैं। इस दुनिया में जगह बनानी हो तो मानना होगा कि अब हम जबरन इकधर्मी, इकरंगी 5000 बरस पुरानी संस्कृति विशेष की शेखी के मार्फत कहीं नहीं पहुंच सकते।

जिस समय हमारे यहां महाराष्ट्र से उठी जातीय हिंसा की आंधी देश में सुर्खियां बना रही है, शेष दुनिया में सूचना, ऊर्जा उत्पादन और यातायात की तकनीक में रोजाना हो रहा असाधारण िकास और हमारे सार्जनिक एं निजी जीन में उनका जबरन बढ़ता प्रेश और आ्रजन अहम मुद्दे बनकर उभर रहे हैं। जब हम 1818 की लड़ाइयों की पृष्ठभूमि पर बहसियाते समय बर्बाद कर रहे हैं, उस क्त सिर्फ अमेरिका के एचन-बी ीजा नियम बदलने से हमारे पांच लाख युाओं के बेरोजगार बनकर घर ापसी की आशंका उभर रही है।

लिहाजा अगर हमको अपनी खिल्ली नहीं उड़ानी तो 2018 में क्षितिज पर उभरते चंद सचमुच के मुद्दों को ईमानदार तटस्थता से समझना होगा। रोजबनते बिगड़ते इन मुद्दों में एक कांटे का मुद्दा है ऊर्जा का। जो लोग हर बात को ेदों की दार्शनिकता से शुरू कराने के आग्रही हैं े इतना तो मानेंगे ही कि धरती पर सौर और अग्नि यानी भूगर्भीय ऊर्जा का महत् कितना महान है, पर 2018 तक आते आते ऊर्जा उत्पादन और ितरण दोनों क्षेत्रों में भारी फेरबदल हुआ है। यह दुनियाभर के भू राजनीतिक समीकरणों में बड़ी तेजी से बदला ला रहा है जो सूचना तकनीक और यातायात के संसाधन के मार्फत सीधे हमारे बाजार और ैदेशिक नीति के दराजों पर दस्तक दे रहे हैं।

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