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आरक्षण : निजी क्षेत्रों को दूर रखें इस राजनीति से

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गुड़गांव (अजय) : पिछले तीन दिनों में सरकार ने एक ऐसे अनोखे कार्य की रूप रेखा बना दी जिसकी कल्पना अब से पहले नहीं की जा सकती थी | हालाँकि कानून मंत्री ने इस विषय पर कहा  कि ये क्रिकेट के 20-20 मैच में अंतिम ओवर में लगाया गया छक्का है अभी ऐसे और भी छक्के लगाए जाएंगे | स्वर्ण जाति के गरीबों को आज़ादी के बाद पहली बार आरक्षण की श्रेणी में ला कर सरकार ने ऐसा दर्शाने  का प्रयास किया है कि वो जन कल्याण के लिए और विशेष रूप से ग़रीबों के लिए आरक्षण देने के लिए इस बिल को लाई है | आरक्षण के तहत 10% आरक्षण स्वर्ण जाति के उन गरीब लोगों को मिलेगा जिनकी वार्षिक आय 8 लाख या 8 लाख से कम है और इसके अलावा बहुत से मापदंड इस श्रेणी में गरीब को लाने के लिए रखे गए हैं , जिनमें से कुछ बहुत सी बातों को स्पष्ट नहीं कर पा रहे है, जिसके कारण इस विषय में भविष्य में  बहुत सी भ्रांतियां होनी स्वाभाविक हैं |

देश ने लोकसभा व राज्यसभा में इस बिल के ऊपर हुई चर्चों को और विभिन्न दलों की टिप्पणियों  को ध्यान से सुना हालांकि बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं जब किसी विषय पर संसद में बिल पर वोटिंग के दौरान मात्र 3 या 4 सदस्य ही विरोध पक्ष में हों, हालाँकि ये दो महीने बाद देश में आने वाले लोकसभा चुनावों के कारण राजनीतिक मजबूरी  के मध्य नज़र ही ऐसा संभव हुआ |

प्रस्तुत आरक्षण विधेयक(अमेंडमेंट) यद्पि देश के स्वर्ण  वर्ग के गरीबों के कल्याण हेतु बताया जा रहा है किन्तु ये स्पष्ट है कि ये विधेयक राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि  हेतु ही पारित किया गया है | दोनों सदनों में विस्त्रतित चर्चा के दौरान जब अनेक संदेहों के साथ-साथ प्रश्न  खड़े किये गए की क्या इस विधेयक को लाने से पूर्व गरीबों की संख्या के सम्बन्ध में ,उनकी आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में तथा उनकी परिस्थितियां बदलने के लिए किये जाने वाले उपायों के सम्बन्ध में कोई सर्वेक्षण करके अथवा अध्यन करके तथ्ये प्राप्त किये गए हैं तो देखा गया की ये प्रश्न अनुत्तर  हो कर ही रह गए | जैसा मैंने पहले कहा कि इस आरक्षण नीति के तहत वार्षिक आये की सीमा 8 लाख रूपए रखी गई , ग्रामीण क्षेत्रों में 5 एकड़ ज़मीन की सीमा रखी गई , 1000 वर्ग फुट आवास की सीमा निर्धारित की गई | यदि गौर से देखें तो उपरोक्त मापदंडों के आधार पर 90 – 97 % सामान्य वर्ग को इस नीति के घेरे में आना होगा | कैसा विरोधावास है की देश में 2.5  लाख रूपए वार्षिक आय वाले को तो धनी मान कर उससे आयकर वसूल किया जाता है | ये आकड़े ये दर्शाते हैं कि नीति-कार समय , समस्या व उसके समाधान के प्रति कितने संवेदनशील हैं |

 सबसे मुख्य  बात इस चर्चा के दौरान सामने आयी कि लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान  व इसी तर्ज़ पर अन्य कुछ नेताओं ने निजी क्षेत्र में भी 60% आरक्षण की बात कही | आज देश में सरकारी क्षेत्र में नौकरियों का ये हाल है कि लगभग 40 -45  लाख आवश्यक नौकरियां रिक्त पड़ी हुई हैं और देश का युवा सरकारी कार्यालयों में दिन प्रतिदिन नौकरियों के लिए चक्र लगा रहा है ऐसी स्थिति में बेरोजगार युवा को कहीं आशा की किरण दिखाई देती  है तो वो केवल निजी क्षेत्र है | किंतु आज देश में निजी क्षेत्र की स्थिति ये है कि देश का उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिसपदा झेलने में सक्षम नहीं है | वर्तमान स्थिति ये है कि श्रम कानूनों के चलते आये दिन महंगाई कम न कर पाने की स्थिति में सरकार न्यूनतम वेतन की दरें बढ़ाती रहती है जिसके कारण किसी भी निजी क्षेत्र के व्यापारी को अपने व्यापार में लाभांश कम करके ही वेतन में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है | दूसरी और भारतीय श्रमिक भारत में अन्य देश जैसे बंगला देश , श्री लंका , चीन और अभी हालहिं में चर्चित हुए वेतनाम  के मुकाबले प्रति श्रमिक उत्पादकता काफी कम है | जिसके चलते जिन उद्योगों में श्रमिक वर्ग का अधिक योगदान है वो सब उद्योग भारी मात्रा में देश से पलायन करके इन देशों में जा रहे हैं | न्यूनतम वेतन सरकार आए दिन बढ़ा रही है | श्रमिक यूनियन व्यवसाय के लिए सिरदर्द बना हुआ है , समस्त सरकारी तंत्र उद्योगपति को अधिक से अधिक नियंत्रण लाने व व्यवसायी से अधिक से अधिक कर वसूली में लगा हुआ है |समाचार के आधार पर लगभग पिछले 7 -8 सालों में देश से 1 लाख के करीब उद्योगपती पलायन कर गए वो अलग बात है कि भारत में कोई भी उद्योगिक संघठन या चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री  की संस्थाएं सरकार की किसी भी नीति का कभी भी विरोध नहीं करती जबकि हर उन्नत देश में सरकार नीतिगत फैसले लेने से पहले उद्योगिक संस्थाओं से परामर्श करती है और उनके द्वारा दिए गए सुझावों को अमल में लाती है | मुझे याद नहीं पड़ता एक भी वाक्य पिछले 50 सालों में जब उद्योगिक संस्थाओं के कहने पर सरकार ने किसी नीति में बदलाव किया हो | समस्त उद्योगिक जगत इसके दुश परिणाम से डरता है लेकिन यदि हम बहु राष्ट्रीय कंपनियों की बात करें जिनका भारतीय युवाओं को रोजग़ार देने में बहुत बड़ा हाथ है उनको यदि आरक्षण जैसे विशुद्ध राजनीतिक फैसले से प्रताड़ित किया गया तो उनको देश से पलायन करने के सिवा  कोई रास्ता दिखाई नहीं देगा | इसीलिए सरकार को चाहिए कि अपने राजनीतिक फैसले सिर्फ अपनी तक और अपनी नीतियों तक ही सीमित रखें | निजी क्षेत्रों को आरक्षण जैसे फैसलों दूर रखें |

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