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SC-ST कानून को मोदी सरकार ने फिर बनाया सशक्त: अशोक

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गुड़गांव 18, अगस्त (अजय) : एससी,एसटी मामले में खुद सरकार के सहयोगी दलों ने भी इसकी निंदा करते हुए सरकार से जल्द से जल्द कानून के मूल स्वरूप को बहाल करने की मांग की। कोर्ट के फैसले के बाद 2 अप्रैल को दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान हिंसक झड़पें हुईं जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई। विवाद तब और बढ़ा जब यह फैसला देनेवाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस गोयल को एनजीटी का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद दलित संगठनों ने एक बार फिर से 9 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया। जाहिर है, सरकार पर काफी दबाव था। उसे सहयोगी दलों के साथ-साथ बीजेपी के दलित सांसदों की भी नाराजगी झेलनी पड़ रही थी। बहरहाल, अब संशोधित बिल में उन सभी पुराने प्रावधानों को शामिल किया जाएगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में हटा दिया था।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधित बिल, 2018 के तहत इस तरह के अपराध की शिकायत मिलते ही पुलिस एफआईआर दर्ज करेगी। केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं होगी। गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेना आवश्यक नहीं होगा। केस दर्ज होने के बाद अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होगा, भले ही इस संबंध में पहले का कोई अदालती आदेश हो। चूंकि संशोधन बिल, संविधान संशोधन बिल होगा ऐसे में इसके लिए सरकार को दोनों सदनों में दो तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। इस मामले में सभी दलों की राय एक है। इसलिए सरकार को इसी सत्र में बिल पारित कराकर इसे कानूनी जामा पहनाने में समस्या नहीं आएगी। इस प्रकरण का संदेश व्यवस्था के सभी अंगों को समझना होगा। हमारा सिस्टम समाज के हर वर्ग को भेदभाव और उत्पीड़न से बचाव की गारंटी देता है। इसके लिए जो उपाय किए गए हैं, उन्हें हटाने की या कमजोर करने की कोशिश कोई भी वर्ग बर्दाश्त नहीं करेगा, खासकर वह तबका जो औरों की तुलना में ज्यादा उपेक्षित और शोषित रहा है। अब तमाम दलित संगठनों की शिकायत दूर हो जानी चाहिए। बेहतर होगा कि वे 9 अगस्त के भारत बंद के अपने आह्वान को वापस ले लें।

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