बादशाहपुर, 11 अक्टूबर (अजय) : रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है। रामलीला की सफलता उसका संचालन करनेवाले व्यास सूत्राघार पर निर्भर करती है, क्योंकि वह संवादों की गत्यात्मकता तथा अभिनेताओं को निर्देश देता है। साथ ही रंगमंचीय व्यवस्था पर भी पूरा ध्यान रखता है।
रामलीला के प्रांरभ में एक निश्चित विधि स्वीकृत है। स्थान-काल-भेद के कारण विधियों में अंतर लक्षित होता है। कहीं भगवान के मुकुटों के पूजन से तो कहीं अन्य विधान से होता है। इसमें एक ओर पात्रों द्वारा रूप और अवस्थाओं का प्रस्तुतीकरण होता है, दूसरी ओर समवेत स्वर में मानस का परायण नारद-बानी-शैली में होता चलता है। ऐसा ही कुछ नजारा हरियाणा प्रदेश के गुरुग्राम बादशाहपुर कस्बे में आयोजित होने वाली शिव शंकर रामलीला कमेठी के पात्रों के रूपांतरण में देखने को मिलता है
जहां पात्र पूरी तरह से अपने रूप में खो जाता है और भगवान राम के चरित्र पर प्रस्तुत होने वाले नाटक को पूरी तरह से धार्मिक बनाते हुए लोगों को आकर्षित करने का कार्य करते है शिव शंकर रामलीला कमेठी द्वारा रामलीला के दुसरे दिन की प्रस्तुती राम जन्म से लेकर ताड़का वध तक प्रस्तुत की गई जहाँ राम का पात्र मोनू भारद्वाज तथा लछमण का पात्र मिंदर उर्फ़ धर्मेन्द्र यादव, मारीच अखिलेश तथा ताड़का बबलू व् दशरथ का अभियन्य किरदार अमित कश्यप ने निभाते हुए शानदार प्रस्तुती देते हुए दर्शकों का मन मोह लिया धर्मेन्द्र यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि रामलीला के दुसरे दिन दर्शकों के रूप में स्थानीय लोगों की भारी भीड़ देखने को मिली
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