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समाज के स्वयंभू ठेकेदार पर कसे नकेल : लीलू सरपंच

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गुडगाँव 23 जुलाई (अजय) : जब समाज में भय और अराजकता की स्थिति हो, तो सरकार को सख्त और सकारात्मक कदम उठाने होते हैं। इसी सूत्र के साथ सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ हत्या के बढ़ते दौर पर न सिर्फ चिंता जताई, बल्कि केंद्र सरकार को अलग से सख्त कानून बनाने को भी कहा है। सच है कि भीड़ का न कोई चरित्र होता है, न चेहरा। वह अलग समय और अलग हालात पर अलग चेहरा लेकर मौजूद होती है, वैसा ही आचरण करती है। अक्सर ये समाज के स्वयंभू ठेकेदार होते हैं, तो कई बार ऐसे लोग, जिन्हें पता ही नहीं होता कि वे क्या करने जा रहे हैं या कर गए हैं।

संविधान में जीने के अधिकार को सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार माना गया है। यहां जिंदगी लेने के तरीके की भी व्याख्या है कि किसी को जीने के अधिकार से वंचित करने की भी हालात विशेष में एक विधिक प्रक्रिया होगी, किसी को भी किसी की जान लेने का अधिकार नहीं होगा। ऐसी स्पष्ट व्यवस्थाओं वाले देश में भीड़ हत्या को सिर्फ भयावह कहा जा सकता है। ऐसी ही घटनाओं के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसी हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती और इनसे निपटने के लिए दरकार है, तो नया कानून बनना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कानून-व्यवस्था से जुड़ा तंत्र देश की लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को बचाए रखने के लिए ठीक तरीके से काम करे, यह सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है। उसे मानना होगा कि भीड़ हत्या सामान्य घटना नहीं है और इसे सामान्य घटना बनने भी नहीं दिया जा सकता।

 

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