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जे.एन.यू. के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में असमर्थ क्यों सरकार

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बादशाहपुर, 6 दिसम्बर (अजय) : हर थोड़े दिन के अंतराल के बाद देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में एक जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी किसी ना किसी विवाद में आ जाती है। उक्त विषय में ध्यान दिलाते हुए गुरुग्राम से प्रशिद्ध समाज सेवी एवं लेखक शरद गोयल ने बताया कि 22 अप्रैल 1969 को अस्तित्व में आई 1019 एकड़ जमीन और 4.12 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह विश्वविद्यालय जिसके लिए 200 करोड़ का केंद्र सरकार भारी भरकम बजट रखती है। साल में लगभग 4 हजार से अधिक डॉक्टरीएट, साढ़े 3 हजार के करीब पोस्ट ग्रेजुएट, एक हजार एक सौ ग्रेजुएट और साढ़े 6 सौ एकेडमिक स्टाफ भारी भरकम वाला विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के लगभग 53 साल के बाद भी अपनी सोच को क्यों नहीं बदल पा रहा है। गोयल ने कहा कि कभी अफजल गुरु की फांसी के पक्ष में, कभी पाकिस्तान के पक्ष में, कभी भारत के टुकड़े करवाने के पक्ष में और हाल ही में जो विवाद सामने आया। भारत की एक जाति विशेष के बारे में भारत छोड़ो व अन्य भद्दी टिप्पणी की। पूर्णत: वामपंथी सोच रखने वाला यह विश्वविद्यालय विश्व में वामपंथ के लगभग समाप्ति के समय में भी अपनी सोच को न बदल पाना किसी गहरी साजिश का नतीजा लगता है।

2014 के केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद देश में एक हिन्दुत्ववादी वातावरण बनाने का प्रयास मीडिया के सभी साधनों द्वारा किया जा रहा है और ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि केंद्र सरकार विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थाओं का भगवाकरण कर रही है। पिछले वर्ष नई शिक्षा नीति के आने पर भी वर्तमान सरकार पर इस प्रकार के आरोप लगने लगे। शरद ने कहा कि ने कहा कि नोटबंदी, जीएसटी, धारा 370, पुलवामा, तीन तलाक आदि बड़े फैसलों को लेने वाली सरकार, जे.एन.यू. के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में असमर्थ क्यों हैं। यह कहीं न कहीं चिंता का विषय है। सख्त फैसले लेने में वर्तमान सरकार को काफी सक्षम माना जाता है। फिर भी सरकार की नाक तले दक्षिण दिल्ली के पोश इलाके में 1 हजार एकड़ में बसा यह विश्वविद्यालय कैसे राष्ट्रविरोधी और सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। जे.एन.यू. के संविधान में मूलभूत परिवर्तन करके नीतिबद्ध व समयबद्ध तरीके से इस विश्वविद्यालय का अगर कहे कि जीर्णोद्धार करना पड़ेगा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वरना थोड़े थोड़े दिन में जख्म में पड़ी मवाद की तरह इस विश्वविद्यालय में समाज विरोधी, राष्ट्रविरोधी और सरकार विरोधी गतिविधियाँ चलती रहेंगी। सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठायें तो आम आदमी के दिमाग में यही रहेगा कि कही जे.एन.यू. का रोग लाइलाज तो नहीं बन गया।

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