PBK NEWS | नई दिल्ली। किसानों की आत्महत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए गुरुवार को कहा कि किसानों की कल्याणकारी योजनाएं कागजों से निकाल कर जमीन पर उतारने की जरूरत है। आत्महत्या के बाद मुआवजा देना समस्या का हल नहीं है, कर्ज के प्रभाव को कम करने की जरूरत है। हालांकि कोर्ट ने माना कि सरकार ठीक दिशा में काम कर रही है और समस्या रातोरात खत्म नहीं हो सकती। कोर्ट ने इसके लिए सरकार को छह महीने का समय दे दिया है। हालांकि सरकार ने एक साल का समय मांगा था।
मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि कोर्ट सरकार के खिलाफ नहीं है लेकिन सरकार को किसानों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं को कागजों से निकाल कर जमीन पर उतारने के लिए पूरी ताकत झोकनी होगी। योजनाओं को अमली जामा पहनाना होगा।
कोर्ट उनके साथ है। पीठ ने कहा कि अगर किसी किसान को कर्ज दिया जाता है और उसकी फसल का पहले ही बीमा होगा तो किसान लोन डिफाल्टर कैसे होगा? क्योंकि अगर फसल खराब होती है तो कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी बीमा कंपनियों की होगी। लेकिन समस्या ये भी है कि बैंक योजनाओं के लेकर किसान तक नहीं पहुंच पाते। सरकार इस दिशा में काम करना चाहती है लेकिन क्या करना चाहती है और कैसे करना चाहती है ये बताए। कोर्ट ने सरकार को योजनाओं का प्रभाव जानने के लिए समय देते हुए मामले की सुनवाई छह महीने के लिए टाल दी।
केन्द्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने किसानों के कल्याण के लिए लागू की गई योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि फसल बीमा योजना व प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना आदि से कुल 12 करोड़ में से 5.34 करोड़ किसान जोड़े गये हैं जो कि 40 फीसद हैं। वेणुगोपाल ने कोर्ट से एक वर्ष का समय मांगा लेकिन कोर्ट ने छह महीने का समय दिया।
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