नई दिल्ली, 27 जुलाई।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 26 जुलाई को कटक स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के दीक्षांत समारोह में भाग लिया और कार्यक्रम को संबोधित किया।
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व योग्य अधिवक्ताओं ने किया था। इससे पता चलता है कि बड़ी संख्या में उस पीढ़ी के वकील राष्ट्र के लिए बलिदान करने की भावना से ओत-प्रोत होते थे। मधु-बैरिस्टर के नाम से प्रसिद्ध उत्कल गौरव मधुसूदन दास को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उनकी जयंती को ओडिशा में ‘अधिवक्ता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि ओडिशा के लोगों के लिए, ‘महात्मा गांधी’ और ‘मधु-बैरिस्टर’ भारत में स्वाधीनता की लड़ाई के दो सबसे सम्मानित प्रतीक हैं। उनके जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों एवं अधिवक्ताओं ने एक प्रगतिशील और एकजुट समाज के निर्माण के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व के आदर्शों को बनाए रखा था।
राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से संवैधानिक आदर्शों के पालन में दृढ़ प्रतिज्ञ रहने का आग्रह किया। उन्होंने विद्यार्थियों को राष्ट्र की प्राथमिकताओं के प्रति संवेदनशील होने की सलाह दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि विद्यार्थियों को ऐसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में अपना योगदान देने के लिए जागरूक होकर प्रयास भी करने चाहिए।
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के आदर्श वाक्य ‘सत्ये स्थितो धर्मः’ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस वाक्य का अर्थ है ‘धर्म दृढ़तापूर्वक सत्य या वास्तविकता में निहित है। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि प्राचीन भारत में न्यायालयों का वर्णन करने के लिए सदैव दो शब्द प्रयोग किए जाते थे, ‘धर्मसभा’ और ‘धर्माधिकार’। आज के आधुनिक भारत के लिए हमारा धर्म भारत के संविधान में निहित है, जो देश का सर्वोच्च कानून है। उन्होंने कहा कि आज उत्तीर्ण होने वाले युवा विद्यार्थियों सहित संपूर्ण कानूनी समुदाय को संविधान को अपने पवित्र ग्रंथ के रूप में मानना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं सहित हमारे देश की जनता के कमजोर वर्गों को समान अवसर और सम्मान देना प्रत्येक भारतीय के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, जो देश के ऐसे नागरिकों की सहायता करने की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि देश के शोषित एवं वंचित साथी नागरिकों की एक बहुत बड़ी आबादी को अपने हक तथा अधिकारों के बारे में जानकारी भी नहीं है और न ही उनके पास राहत अथवा न्याय पाने के लिए अदालत में जाने के साधन सुलभ हैं। राष्ट्रपति मुर्मु ने विद्यार्थियों को उनका कर्तव्य-बोध कराते हुए कहा कि वे अपने कामकाजी समय से कुछ वक्त निकाल कर उसे शोषित वर्ग या सुविधाओं से वंचित लोगों की सेवा के लिए समर्पित करें। राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपनी व्यावसायिक गतिविधियों का कम से कम एक छोटा हिस्सा वास्तविक करुणा की भावना के साथ गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करने हेतु खर्च करें। उन्होंने कहा, यह ठीक ही कहा गया है कि कानून सिर्फ एक आजीविका का एक साधन ही नहीं है, बल्कि यह एक आह्वान है।
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