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सड़को के गड्डों से बढ़ रहा निजी अस्पतालों का कारोबार : वशिष्ठ गोयल

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गुड़गांव 29 जुलाई (अजय) : सरकार व् प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा आज लोग भुगत रहे है नवजन चेतना मंच के संयोजक वशिष्ठ कुमार गोयल ने बोलते हुए कहा कि प्रदेश की सड़कों में बने गड्डो पर लाखों रूपये तो सरकार द्वारा खर्च करने की बातें की जाती है लेकिन फिर भी सड़कों के गड्डो में गिरने से लोगो को चोटिल होना पड़ता है जिसकी वजह से इन गड्डो से घायल लोगों को जल्दबाजी में तुरंत उपचार की मंशा से निजी अस्पताल में ले जाने का कार्य करते है क्योकि सरकारी अस्पतालों में आपातकाल किस स्तिथि में अक्सर मरीजों को रेफर करने का खेल चलता रहता है और मरीज मृत हो जाता है ज्सिके चलते सरकार द्वारा बनाई गई सड़कों में बने गड्डों में गिर कर घायल चोटिल होते है और निजी अस्पताल पहुचते है जिसकी वजह से निजी अस्पतालों का कारोबार भी दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है लेकिन गड्ढों के कारण सड़कों को बड़ी बदनामी झेलनी पड़ती है। सड़कों की अर्जित प्रतिष्ठा पर गड्ढे पानी फेर देते हैं और सड़क चुल्लू भर पानी अपने में भर डूब कर मर जाती है। पानी ही समस्या की मूल जड़ है। पानी बोर्ड की उस एग्जाम के जैसा है, जिसमें सड़क फेल हो जाती है और परीक्षा परिणाम गड्ढे के रूप में आता है। गड्ढे का जन्म कोई आसान घटना नहीं है। यह मक्कारी, बेईमानी, चोरी के सम्मिश्रण से होने वाला साहसिक कार्य है। अमूमन विदेशों में सड़क एक मर्तबा बनती है और सालों चलती है लेकिन हमें ऐसे टिकाऊ विकास की आदत नहीं है। हमारी विकास की परिभाषा एक सड़क को बार-बार बनाने में है। एक बार में वह सुख नहीं जो हर बार बनाने में बनाने वालों को मिलता है।
हमारे यहां की सड़कें इतने मानसिक तनाव में हैं कि वे अवसाद से ग्रसित हो जाती हैं और आत्महत्या कर लेती हैं। हालांकि यह एक तरह से हत्या होती है जो व्यवस्था की अव्यवस्था के परिणामस्वरूप आत्महत्या करार दे दी जाती है। फिर नई सड़कों को बनाया जाता है। जब कभी कोई सड़क आत्महत्या करने में विफल हो जाती है तो उसकी मरहम पट्टी के लिए पैचवर्क किया जाता है। यह थोड़ा दर्दनाक होता है जो उसकी सुंदरता और संरचना को छिन्न भिन्न कर देता है।

जब गड्ढे का जन्म हो ही जाता है तो सड़क की बहन और गड्ढे की मौसी बरखा रानी झूमकर उसे पानी से लबालब कर देती है। यह जल कुंड सूक्ष्म जीवों के लिए समुद्र की तरह होता है। गड्ढे मच्छरों की जन्मस्थली होते हैं। एक प्रकार से गड्ढे चिकित्सकों को रोजगार प्रदान करने का साधन भी हैं। गड्ढे के पानी से पैदा हुआ मच्छर आदमी को बीमार कर डॉक्टर साहब को दो पैसे देता है तो वही इन्हीं गड्ढे में गिर चोटिल हुआ इनसान डॉक्टर के लिए बोनस समान होता है। बच्चे नौका दौड़ प्रतियोगिता के जरिये इसमें अपने मनोरंजन के खेल खेलकर देश की खेल प्रतिभा को बढ़ाने का काम करते हैं। देखा कोई और देश जहां बच्चे सड़कों के गड्ढो में नाव चलायें? ऐसा सुख सिर्फ किस्मतवान को ही मिला करता है। गाड़ी के पहियों की गड्ढे से जन्मजात दुश्मनी है। मानो गाड़ी सरकार है तो गड्ढा आम जनता। गाड़ी को गड्ढे पर चढ़कर ही जाना है, जिससे गड्ढे के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है लेकिन लोकतंत्र में गाड़ी को यह अधिकार है कि वह पांच वर्षों तक गड्ढे पर से गुजरती रहे।

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