जीतना जिनकी आदतों में शुमार था, जिनके भाल विजयी तिलक के अभ्यस्त थे, जिनकी हुंकार और गर्जना न्यूज़ चैनलों के ‘सिग्नेचर ट्यून’ थे, दुनिया की उसी सबसे बड़ी पार्टी के सबसे बड़े महानायक को कर्नाटक की धरती पर अगर हार का स्वाद चखना पड़ा है तो यह सियासी रंगमंच का सबसे अधूरा स्वांग है। भाजपा की चुनावी तैयारियां कांग्रेस से कहीं आगे थीं। जब से कर्नाटक में चुनाव घोषित हुआ और जब चुनावी आचार संहिता लगी इस अवधि में भाजपा धुरंधरों ने 3116 कैंपेन रैली कर दी, भगवा नेता गण 311 मंदिर व मठों में शीश नवा आए, इसके अलावा 1377 रोड शो, 9125 पब्लिक मीटिंग, गली-नुक्कड़ों पर होने वाली 9077 स्ट्रीट कॉर्नर मीटिंग। भाजपा ने अपने 128 राष्ट्रीय नेताओं को कर्नाटक के चुनाव में झोंक दिया। 15 कैबिनेट मंत्रियों ने यहां डेरा-डंडा डाल रखा था। पीएम मोदी ने भी खुद को यहां दांव पर लगा दिया, उन्होंने न सिर्फ अपने चेहरे पर यहां वोट मांगे बल्कि 19 रैलियां और 6 रोड शो भी कर दिए। बेंगलुरू के उनके रोड शो का अभूतपूर्व नज़ारा था, वे 26 किलोमीटर चले। चुनाव के आखिरी 10 दिनों में तो पीएम ’कनेक्ट विथ द् पीपल’ को अलग ऊंचाई पर ले गए, पीएम जहां भी गए अपने साथ लिंगायतों के सबसे बड़े नेता येदुरप्पा को सदैव अपने साथ रखा। गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपना यहां सर्वस्व झोंक दिया, उन्होंने 16 रैलियां और 15 रोड शो किए, भाजपाध्यक्ष नड्डा ने 10 रैलियां और 15 रोड शो किए, केंद्रीय नेत्री स्मृति ईरानी ने 17 पब्लिक मीटिंग्स और 2 रोड शो किए, योगी की भी 9 रैलियां और 3 रोड शो हुए, असम के बड़बोले सीएम हेमंत बिस्वा सरमा ने 15 रैलियां और 1 रोड शो किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी 6 रैलियां और 1 रोड शो हुआ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे और उप मुख्यमंत्री फड़णवीस ने मिल कर 17 रैलियां की। यह फेहरिस्त और भी लंबी है, ‘पर होइए वही जो राम रचि राखा।’
कौन बनेगा सीबीआई का नया मुखिया?
सीबीआई के मौजूदा डायरेक्टर सुबोध कुमार जायसवाल का कार्यकाल इसी महीने यानी मई में समाप्त हो रहा है, सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार ने भी मन बनाया हुआ है कि जायसवाल को आगे एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा, सो उनके उत्तराधिकारी की तलाश जोर-शोर से जारी है। माना जाता है कि इस वक्त रेस में तीन नाम सबसे आगे चल रहे हैं, इनमें से पहला नाम दिल्ली के वर्तमान पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा का है, जो तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अफसर हैं और उन्हें लगता है कि दिल्ली पुलिस में उनसे एक बाहरी की तरह सुलूक हो रहा है, सो उन्होंने यहां से जाने की इच्छा जताई है। दूसरा नाम मध्य प्रदेश के डीजीपी सुधीर सक्सेना का चल रहा है, पर्यवेक्षक अब तलक इनकी दावेदारी को सबसे मजबूत बता रहे हैं। तीसरा नाम एनआईए प्रमुख दिनकर गुप्ता का सुर्खियों में है, पर उनके बारे में माना जा रहा है कि ’रॉ’ प्रमुख सामंत गोयल उन्हें अपनी एजेंसी में ले जाना चाहते हैं। अभी हालिया दिनों में महाराष्ट्र के कई आईपीएस अधिकारियों को भी प्रमोशन मिला है, इनमें से एक अतुलचंद्र कुलकर्णी भी हैं जो इन दिनों ’रॉ’ में प्रतिनियुक्ति पर हैं। सीबीआई के अगले मुखिया के तौर पर इनका नाम भी रेस में बताया जाता है। एक थ्योरी और चल रही है कि ’इस बार सीबीआई का चीफ बनने का मौका उसी अफसर को मिलेगा जिसकी स्लेट क्लीन हो और जिन्होंने पहले कभी सीबीआई में काम नहीं किया हो,’ इस नाते तो संजय अरोड़ा का दावा सबसे मजबूत दिखता है, पर एक और सूत्र का दावा है कि सरकार ने एक तरह से सुधीर सक्सेना का नाम फाइनल कर रखा है बशर्ते उन्हें चयन समिति की हरी झंडी मिल जाए।
ईडी किसके जिम्मे होगा?
ईडी डायरेक्टर संजय मिश्रा को केंद्र सरकार द्वारा तीसरा एक्सटेंशन दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को खासी झाड़ लगाई है, अदालत ने केंद्र सरकार के इस फैसले कई सवाल भी उठाए हैं, इसके बाद से ही प्रवर्तन निदेशालय के नए निदेशक की तलाश शुरू हो गई है। आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अफसर ही ईडी चीफ का जिम्मा उठाते हैं। सूत्रों की मानें तो इस वक्त ईडी चीफ की रेस में दो लोग प्रमुखता से आगे चल रहे हैं, इनमें से एक 1989 बैच के आईपीएस अफसर तिहाड़ जेल के डीजीपी संजय बेनीवाल हैं और रेस में दूसरा नाम है 1987 बैच के आईआरएस अफसर प्रवीण कुमार का जो इस वक्त अहमदाबाद में इंकम टैक्स के प्रिंसिपल डीजी हैं। ईडी के मौजूदा चीफ संजय मिश्रा का तीसरा सेवा विस्तार इस साल नवंबर में खत्म हो रहा है। वे सबसे पहले नवंबर 2018 में 2 साल के लिए ईडी डायरेक्टर नियुक्त किए गए थे, फिर इन्हें 2020 में से एक साल का सेवा विस्तार दिया गया। इसके बाद नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ’सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर एक्ट’ में बदलाव कर एक अध्यादेश लेकर आई जिससे कि उनके परम प्रिय संजय मिश्रा को कार्यकाल का एक और विस्तार दिया जा सके। सनद रहे कि संजय मिश्रा 1984 बैच के राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। 95 फीसदी विपक्षी नेताओं पर चल रही ईडी की जांच की कमान भी इनके पास ही है। विपक्षी नेताओं की यह फेहरिस्त काफी लंबी है जिसमें सोनिया, राहुल, प्रियंका, रॉबर्ट वाड्रा, डीके शिवकुमार, हेमंत सोरेन, फारूक, उमर व महबूबा मुफ्ती, अनिल देशमुख जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
प्रियंका को मिलेगी महती जिम्मेदारी
कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस के हौसले सातवें आसमान पर है। सूत्र बताते हैं कि अब प्रियंका यूपी से मध्य प्रदेश शिफ्ट करने वाली हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी हो जाता है कि पिछले दिनों प्रियंका ने लखनऊ में रायबरेली रोड स्थित अपने दफ्तर पर ताला जड़ दिया है। उनकी पूरी टीम अब लखनऊ से दिल्ली आ गई है, माना जाता है कि बहुत जल्द टीम को भोपाल शिफ्ट कर दिया जाएगा। सूत्र यह भी खुलासा करते हैं कि ’कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव होने के साथ-साथ बहुत जल्द प्रियंका को राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की भी जिम्मेदारी मिलने जा रही है।’ इसके अलावा प्रियंका का कांग्रेस के सांगठनिक मामलों में भी खासा दखल होगा। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रियंका का अहम रोल रहने वाला है, सूत्रों की मानें तो प्रियंका को कैंपेन कमेटी का मुखिया भी बनाया जा सकता है। प्रियंका से जुड़े सूत्रों की मानें तो वह कैंपेन की शुरूआत जबलपुर जिले के ग्वारीघाट से करेंगी। जहां वह नर्मदा पूजन के बाद 3 किलोमीटर से भी लंबा रोड शो करेंगी। सनद रहे कि ग्वारीघाट नर्मदा नदी के तट पर बसा है, मान्यता है कि गुरू नानक देव जी भी यहां आए थे।
बूथ पर फोकस करती कांग्रेस
कहते हैं असफलताओं से बड़ी कोई दूसरी सीख नहीं होती, पिछले 9 सालों में कांग्रेस ने भी अपनी असफलताओं से सबसे बड़ी सीख यही ली कि जमीन पर उसका जनाधार दरक रहा है, उसके संगठन को दीमक लग रहा है, उसके लोग अन्य पार्टियों का रुख कर रहे हैं। सो, अपने बूथ मैनेजमेंट को पुख्ताधार देने के लिए कांग्रेस ने इसका जिम्मा अपने वरिष्ठ नेता डीपी राय को सौंपने की तैयारी की है। राय पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखने वाले एक ग्रासरूट वाले नेता हैं, जो जलपाईगुड़ी और अलीपुर द्वार से कांग्रेस के एमएलए रहे हैं, 1984 से 1990 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे हैं, इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस संगठन में कई महती जिम्मेदारियां उठाई हैं। डीपी राय को कांग्रेस कार्यकर्ताओं के ट्रेनिंग का जिम्मा सौंपा जा सकता है, जो कांग्रेस सेवा दल, महिला कांग्रेस, एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के कैडर को प्रशिक्षित कर उन्हें बूथ मैनेजमेंट का गुरू सिखाएंगे। अब तक कांग्रेस में ट्रेनिंग सेंटर चलाने का जिम्मा सचिन राव पर था, जो महाराष्ट्र के वर्धा में कांग्रेस का ट्रेनिंग सेंटर संचालित करते रहे हैं। पर डीपी राय का मानना है कि ’ट्रेनिंग के लिए कांग्रेस के हर कार्यकर्ता को वर्धा जाने की क्या जरूरत है, जब वे अलग-अलग राज्यों में जाकर ऐसे ट्रेनिंग कैंप लगा सकते हैं।’ राय कांग्रेसी सियासत में एक वक्त हाशिए पर चले गए थे क्योंकि उन्होंने हमेशा कांग्रेस का लेफ्ट के साथ गठबंधन का विरोध किया जबकि इस मामले में राहुल गांधी का नजरिया किंचित अलग रहा है, राहुल वामपंथी राजनीति के बड़े प्रशंसक रहे हैं।
चाचा पवार पर भतीजे का वार
एनसीपी मुखिया शरद पवार अपनी सांसद पुत्री सुप्रिया सूले को अपना राजनैतिक वारिस घोषित करना चाहते हैं, अपने स्वास्थ्यगत कारणों की वजह से। पवार ने शायद इसीलिए अपने राकांपा चीफ पद से हालिया दिनों में त्याग पत्र दे दिया था, वे चाहते थे कि ’वे राकांपा मुखिया की कुर्सी अपनी बेटी को सौंप कर खुद मार्गदर्शक के अवतार में आ जाएं।’ उन्होंने अपने भतीजे अजित पवार को बुला कर यह समझाना चाहा कि अजित अपना फोकस महाराष्ट्र की राजनीति में रखें और सुप्रिया राष्ट्रीय स्तर पर एनसीपी के विस्तार की पटकथा लिखें, पर अजित नहीं माने। उल्टे उन्होंने धमकी दे डाली कि ’अगर सुप्रिया को राकांपा अध्यक्ष घोषित किया गया तो वे पार्टी के ज्यादातर विधायकों को साथ लेकर भाजपा में शामिल हो जाएंगे।’ यही वजह है कि बीच-बचाव की मुद्रा अख्तियार करने के लिए पवार को अपना इस्तीफा वापिस लेना पड़ा। वहीं सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र के शिंदे सरकार पर हालिया फैसले से भाजपा को भी अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। नहीं तो कहीं अगर सर्वोच्च न्यायालय शिंदे सरकार को असंवैधानिक करार देता तो भाजपा को भी शिंदे से पीछा छुड़ाने का एक नायाब मौका हाथ लग जाता। भाजपा जानती है कि वह शिंदे को अपने कंधे पर बिठा कर महाराष्ट्र नहीं जीत सकती, सो अंदरखाने से पार्टी रणनीतिकारों ने अपने तार एनसीपी के असंतुष्ट नेता अजित पवार से जोड़ रखे थे, अजित पवार भी देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व वाली नई भाजपा सरकार में उप मुख्यमंत्री बनने को तैयार थे, पर अदालत के हालिया फैसले से दोनों पार्टियों के इरादों पर पानी फिर गया।
…और अंत में
कर्नाटक में चुनाव प्रचार के वक्त से ही जैसी तस्वीर उभर रही थी चुनावी नतीजे भी इससे मिलते-जुलते ही आए। कल्याण कर्नाटक, कित्तूर और दक्षिण कर्नाटक में आशा के अनुरूप ही कांग्रेस ने मैदान मार लिया। भाजपा कोस्टल कर्नाटक और बेंगलुरू में कमल खिलाने में कामयाब रही। जेडीएस के गढ़ में ही कई जगह सेंध लग गई। यह भी लगा कि भाजपा अपने विकास कार्यों को गिनाने के बजाए कांग्रेस के बुने जाल में फंस गई, सो जायज मुद्दों को उठाने के बजाए उसने बजरंग बली का गदा उठा लिया। दरअसल, कांग्रेस का मेनिफेस्टो तय करते समय इस बात पर सहमति बनी थी कि कांग्रेस धार्मिक आधार पर समाज को बांटने वाले संगठनों पर बैन लगाएगी। लेकिन मेनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन जी परमेश्वरा ने जानबूझ कर इसमें बजरंग दल और पीएफआई का नाम डलवा दिया, जिससे भाजपा ’बजरंग बली’ के मुद्दे में उलझ कर रह जाए और हुआ भी यही।
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