नई दिल्ली, 21 सितंबर। जस्टिन ट्रूडो भारत-कनाडा के रिश्तों को दांव पर लगाने का मन बना चुके थे। तभी तो संसद में भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने से पहले उन्होंने NATO के कई नेताओं को ब्रीफ किया था। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, यूके पीएम ऋषि सुनक और फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से बात की थी। कनाडा की विदेश मंत्री मेलनी जॉली ने धमकी तक दे डाली कि G7 देशों के सामने उठाया जाएगा। कनाडा में खालिस्तानी आतंकवाद को शह मिलने की वजह से दोनों देशों के संबंधों में खटास कई सालों से बरकरार थी। मगर ट्रूडो ने आधिकारिक तौर पर, पूरी दुनिया के सामने भारत पर एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या का आरोप लगा दिया। भारत से पंगा लेने का फैसला भले ही आसान न रहा हो, मगर ट्रूडो शायद मजबूर हो गए थे। उनकी इस मजबूरी की एक खास वजह है, समझिए।
ट्रूडो ने कनाडा की संसद में जिस खालिस्तानी आतंकवादी हरजीत सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार बताया, वह ब्रिटिश कोलंबिया में रहता था। कनाडा में सिखों की सबसे ज्यादा इसी प्रांत में चलती है। वह यहां की आबादी में 5.95 प्रतिशत हैं। सिखों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी ओंटारियो में रहती है।
2021 की जनगणना के अनुसार, कनाडा में कुल 7.7 लाख सिख रहते हैं। पूरे कनाडा की आबादी में सिखों का हिस्सा 2.1 प्रतिशत है।
भारत में सिखों की आबादी 1.6 करोड़ (2011 की जनगणना के आंकड़े) है। कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.7 प्रतिशत बैठती है। सिख मुख्य रूप से पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में बसे हैं।
यानी, आबादी में सिखों की भागीदारी भारत से ज्यादा कनाडा में है। सिख वहां पर अहम वोट बैंक हैं। 2019 में कनाडा के भीतर सिख मूल के 18 सांसद थे, उसी साल भारत से 13 सिख लोकसभा सांसद चुने गए। 2021 में कनाडाई संसद के चुनाव में 15 सिख निर्वाचित हुए।
जाहिर है ट्रूडो के लिए सिख आबादी को नजरअंदाज कर आगे बढ़ पाना संभव नहीं। वह सियासी फायदे के लिए आग से खेलने की कोशिश कर रहे हैं।
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