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युवा और डिजिटल क्रांति के जनक राजीव गांधी : वर्धन यादव

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बादशाहपुर, 19 अगस्त (अजय) : भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की 78 वीं जयंती पर बोलते हुए कांग्रेस के युवा राष्ट्रीय सचिव वर्धन यादव ने कहा कि 20 अगस्त 1944 दो घटनाओं के कारण जाना जाता है। पहली द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मन तानाशाह हिटलर की निर्ममता की उल्टी गिनती, जिसने खुद को अजेय समझ लिया था। दूसरा भारत में एक ऐसे युग पुरुष का अवतरण जिसने सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बनते ही देश की तकदीर और तस्वीर दोनों को बदल कर रख दिया। अस्सी के दशक में अपनी दूरगामी नीतियों के ऐसे बीज उन्होंने बोए जिसकी लहराती फ़सल आज भारत ही नहीं पूरी दुनियां काट रही है। संयोग की बात है कि आज जब भारत करीब 78 देशों को अपना कम्प्यूटर ज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी दे रहा है ठीक उसी समय हम आज उसी कम्प्यूटर मैन,  आधुनिक भारत के निर्माता भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी जी की 78 वीं जयंती मना रहे हैं।

राजीव गांधी के जन्म से 15 महीने पहले ही उनकी मां इंदिरा गांधी अंग्रेजों की जेल से रिहा हुईं थीं और पिता 13 महीने पहले। उनके नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू तब भी अपनी अंतिम और नौ वीं जेल यात्रा पर थे। देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था और हर कोई अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने को आतुर था ऐसे हालात में उस महान नेता ने जन्म लिया।
“उगता है मिटता है आदमी फिर और जन्म लेता है!
हिम्मत और संघर्ष की कोख से अवतार जन्म लेता है!”
मानों ये लाइनें स्व. गांधी के लिए ही लिखी गई हैं।‌ पहले हवाई दुर्घटना में भाई संजय गांधी के असामयिक निधन के कारण उन्हें पायलट की नौकरी छोड़कर सक्रिय राजनीति में आना पड़ा। युवा कांग्रेस की बागडोर संभालते हुए युवाओं की क्षमता और शक्ति का एहसास किया। यही कारण है कि डिजिटल इंडिया के बाद उनका सबसे बड़ा क्रान्तिकारी फैसला युवाओं को अधिक से अधिक संख्या में सक्रिय भागीदारी देना रहा। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने युवाओं के लिए मतदान के अधिकार 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया। राजनीति में क़दम रखा ही था कि मां इंदिरा गांधी की आतंकवाद से लड़ते हुए हत्या हो गई। पंजाब से आतंकवाद का उन्मूलन करने के लिए गांधी परिवार और कांग्रेस को एक और बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इतने बड़े जख्मों के बाद भी वह योद्धा मैदान में डटा रहा और उस संकल्प पर आगे जिसने सशक्त और मजबूत भारत की बुनियाद तैयार की। तमाम तरह के विरोध के बावजूद भी राजीव जी ने भारत के लिए कंप्यूटर और डिजिटल क्रांति के दरवाजे खोल दिए। इसे साकार करने का दायित्व उन्होंने सैम पित्रोदा जी को सौंपा। उनका यही कदम आज करोड़ों युवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
अतीत के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो एक बात स्पष्ट नज़र आती है टैक्नोलॉजी भारत की बड़ी कमजोरी रही है। हमने बार बार कमजोर तकनीक की वजह से मात खाई है। हम हाथियों से लड़ रहे थे तब यूनानी, हूंण, और कुषाण तेज गति से वार करने वाले उन्नत घोड़े लेकर हमें हरा गए। जब हमने सही से घोड़े चलाने सीखे तो मुगल तोप ले आए जिनके मुंह से निकलती आग के सामने हमारे घोड़े टिक नहीं सके। और जब हमने तोप में महारथ हासिल की तो अंग्रेजी बंदूकों के सामने हमारी तोप काम नहीं आ सकी। आज सारी शक्ति सूचना व तकनीक में समाहित हो गई है। पूरी दुनियां का अस्तित्व मात्र एक बटन पर आकर टिक गया है।
यह बात साढे तीन दशक पहले हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी जी ने अच्छी तरह समझ ली थी। भारत को सूचना तकनीक से लैस करने और युवाओं की क्षमताओं का उपयोग करने का खाका तैयार कर लिया।
श्री गांधी यह भी जानते थे कि असली भारत गांव में रहता और गांव का सशक्तिकरण किए बिना देश मजबूत नहीं बन सकता। देश में पंचायती राज व्यवस्था में सुधार किए गए और ग्रामीण इकाइयों को मजबूत किया गया। आज ग्राम पंचायतों को मिले अधिकार राजीव गांधी की ही देन हैं। शिक्षा के क्षेत्र में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हो या फिर इंदिरा गांधी आवास योजना दोनों ने गरीब लोगों के लिए तरक्की के रास्ते खोल दिए। कुशल और प्रभावी विदेश नीति की बात करें या राष्ट्रीय एकीकरण की दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने मिशाल कायम की। हालांकि इसकी कीमत उनको अपना लहू देकर चुकानी पड़ी। आतंकवाद दुनिया के किसी भी कोने में हो उसका खात्मा करना उनके संस्कारों में था। और शान्ति के लिए वो कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे। श्रीलंका में एक बार उनके ऊपर हमला हो चुका था फिर भी उन्होंने वहां शांति सेना भेजी। भले ही इसके लिए उन्हें जान की बाजी लगानी पड़ी। ऐसे निडर, साहसी, और दूरदृष्टा प्रधानमंत्री को मैं हृदय से सल्यूट करता हूं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म भी इसी अगस्त माह में आता है जिसमें स्व. श्री राजीव गांधी का आता है। और यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैंने उनके युग में जन्म नहीं लिया। यह भी एक संयोग है कि जिस वर्ष उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया उसी वर्ष मेरा जन्म हुआ। मात्र चार महीने बाद। लेकिन एनएसयूआई और डूसू की छात्र राजनीति में मैंने उनकी महंक मैंने महसूस की। उन्होंने जिस युवा कांग्रेस की बागडोर संभाली उसके राष्ट्रीय सचिव का दायित्व आज मेरे पास है यह मेरे जैसे कम उम्र के युवा कार्यकर्ता के सौभाग्य और गर्व का विषय है।यह राजीव गांधी जी का बनाया हुआ रास्ता है जो मेरे जैसे साधारण पृष्ठ भूमि वाले लाखों युवाओं के लिए कांग्रेस में अवसर के दरवाजे खोलता है। आइए आज हम उस महान् और दूरदर्शी राजऩेता को नमन करें जिसने उन्नत और सशक्त भारत की मजबूत रखी और अपने प्राणों का बलिदान देकर वो अमिट छाप छोड़ी जो युगों-युगों तक अविस्मरणीय रहेगी। इतिहास सदैव राजीव गांधी का नाम उसी आदर और सम्मान के साथ लेता रहेगा जिसके वो वास्तविक हकदार हैं।
(लेखक- पूर्व एनएसयूआई अध्यक्ष व युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव भी हैं)

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